जब हमे कोई रास्ता नहीं दिखाई देता तो भगवान कोई-न -कोई रास्ता जरूर दिखा देता हैं और हमे निश्चय करके उस रास्ते पर चलना चाहिए रास्ता खुद पे खुद आसान हो जायेगा और हम अपनी मंजिल पर पहुंच जायेगे
God Help Me
आइए, हम आपको एक कहानी के माध्यम से समझते हैं , एक बार की बात हैं एक लड़के ने गुरुकुल में गुरु से शिक्षा प्राप्त की थी फिर उसके बाद उसने शादी कर ली और जिससे उसकी ज़िम्मेदारी ओर बड़ा गयी घर के लिए उस काम करना और घरवालों के लिए पैसे कमाने थे उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था क्या करे , फिर वह लड़का जाकर गुरूजी से मिला जहां से उसने शिक्षा प्राप्त की और गुरु को सब बात बताई कि गुरुकुल से निकलने के बाद उसका मन किसी भी काम में नहीं लगा ।
न ही दुकान में और न ही नौकरी में। उसने गुरु को बताया कि मेरी एक पत्नी और बच्चा हैं उनका भी ध्यान रखना हैं पर में कैसे करू मेरा मन किसी भी काम में नहीं लगता हैं ये सब बाते सुनकर गुरूजी उसकी बात पर हसने लगे।
वह बोले -“आप एक समय में एक ही काम किया करो और एक ही काम पर ध्यान लगाया करो ।”
शिष्य बोला- गुरूजी मुझसे तो वह भी नहीं होता
तब गुरूजी बोले-” एक काम करो तुम सबसे पहले ये बताओ की तुम इस समय क्या चाहते हो “ फिर देखते हैं तुम्हरे साथ क्या समस्या आती हैं
शिष्य बोला – गुरूजी मेरा मन किसी भी काम में नहीं लगता हैं तब शिष्य बोला गुरूजी मेरा मन तो उस पहाड़ी पर जो शिव मंदिर हैं उसके दर्शन करना चाहता हूँ काफी दिन से सोच रहा शिवजी के दर्शन के लिए परन्तु जा ही नहीं पा रहा हूँ तब गुरूजी बोले ये तो अच्छी बात हैं तुम शिव के दर्शन के लिए जाओ और भगवान का आशीर्वाद लेकर आओ और अपने जीवन में आगे बढ़ाओ मंदिर जाकर तुम्हे बहुत अच्छा लगेगा और अपनी समस्या का समधान भी मिलेगा ।
उसके बाद शिष्य सोचता रहा अगर मंदिर जाना ही हैं तो सुबहे तक का क्यों इंतज़ार किया जाए। यह सोचकर वह मंदिर जाने के लिए तैयार हो गया फिर उसकी नज़र मंदिर और उस पर जाने वाले रास्ते पर गई जहाँ बहुत ज्यादा अंधेरा था फिर शिष्य ने सोचा उसने एक लालटेन ली फिर उसने देखा की लालटेन की रौशनी बहुत कम हैं और जाना भी बहुत दूर हैं रास्ता भी बहुत कठिन हैं उसने सोचा सुबहे होने का इंतज़ार किया जाए और वह लालटेन लिए रास्ते में ही सुबहे होने का इंतज़ार कर रहा था
तभी उसकी नज़र एक बूढ़े इंसान पर गई फ़टे- पुराने कपडे और हाथ में दीया लिए हुए वह मंदिर की सीढिया चढ़ रहा था। तभी उसने बूढ़े बाबा को आवाज लगायी की आप इस दिए की रौशनी से मीलो का सफर कैसे तय कर सकोगे आपको थोड़ा बहुत भी गणित आता हैं क्या ? बूढ़े बाबा उस लड़के की बात पर हसने लगे और बोले कोई भी व्यक्ति एक कदम से ज्यादा चल पाया हैं
रौशनी चाहे हजारो कदम बढ़ती रहे पर एक क़दम से ज्यादा कोई नहीं चल पाया हैं और सबसे ज्यादा हैरानी की बात यह हैं कि जब में एक कदम आगे बढ़ता हूँ तो रौशनी भी एक कदम आगे बढाती हैं तुम भी एक कदम आगे बढ़ाओ रौशनी भी एक क़दम आगे बढ़ेगी
यही हिसाब ज़िन्दगी का हैं हिसाब केवल एक कदम का ही लगया जा सकता है पूरी ज़िन्दगी का नहीं और पूरी ज़िन्दगी का हिसाब लगाना संभव नहीं हैं और जो एक-२ कदम सोचे के रखता हैं वो हज़ारो मील की दुरी तय कर लेता हैं और जो हज़ारो मील का हिसाब लगता हैं वो एक कदम भी नहीं उठा पता उसको अगले ही कदम का डर रहता हैं ।
श्रीमद्भागवत गीता के 2 अध्याय के 48 श्लोक में बताते हैं कि हे धनजय हार और जीत को मन से निकलकर कर्तव्य का पालन करो पहले कदम रखने पर यह सोच लेते हैंकि हार मिलेगी या जीत। यही जीत का लगाव और हार का डर हमे लक्ष्य तक नहीं पहुंचने देता जब कुछ समझ नहीं आ रहा होता हैं तो हार और जीत कि परवाह किये बिना एक-२ कदम आगे बढ़ना चाहिए