Your Desires, your feelings, your mind, your conflicts, success behind conflicts in Hindi
अक्सर लोगो के जीवन में एक पल ऐसा आता है जब दिल कुछ कहता है और दिमाग कुछ और। अब हमको ऐसे में किसकी सुननी चाहिए। वो एक ऐसी phase होती है जहाँ पर जाकर इंसान अटक जाता है और उसको उस समय कुछ भी समझ नहीं आ रहा होता है।
एक इंसान के साथ यहाँ पर बहुत conflict होता है इसलिए हमको सबसे पहले समझना होगा कि क्या दिल और दिमाग अलग-अलग हैं ?
Mind क्या है?
Mind(Intellect) एक ऐसा शब्द है जिससे प्रत्येक व्यक्ति परिचित है। मनुष्य का Mind ही समस्त शक्तियों का स्त्रोत होता है Mind की दो शक्तियॉ होती है, एक कल्पना शक्ति तथा दूसरी इच्छा शक्ति।
इंसान के अंदर सुबह से लेकर रात तक हज़ारो विचार आते है, वो actual में mind के अंदर ही आते है अब वहाँ पर उन विचारो से related इंसान के अंदर desire पैदा होने लगते है।
जब व्यक्ति की इच्छा शक्ति का विकास होता है तो इस मन से व्यक्ति प्रत्येक कार्य को करने में सक्षम हो जाता है वह चाहे तो अमीर बन सकता है वह चाहे तो स्वयं स्वस्थ रह सकता है तथा औरों को भी स्वस्थ रख सकता है वह चाहे तो परमात्मा का भी अनुभव कर सकता है। आध्यात्मिक उन्नति के लिए भी आवश्यक है कि व्यक्ति मन को वश में करे, भगवान श्री कृष्ण ने भी भगवद्गीता में कहा था, मन ही सबसे बड़ा शत्रु और मन ही सबसे बड़ा और अच्छा मित्र हैं।
मन हमारे भीतर की शक्ति है जो इन्द्रियो एवं मस्तिष्क के द्वारा देखता है,सुनता है,सुघता है,स्वाद लेता है तथा स्पर्श की अनुभुति करता है। मन ही शरीर को सुख-दुख का अनुभव कराता है। क्योकि इसके अंदर जब हमको कोई feeling होती है तो एक chemical release होता है।
लोग अक्सर यह कहते सुने जाते हैं कि उनका दिल उन्हें एक ओर ले जाता है और दिमाग दूसरी ओर जाने को (Desire) कहता है। योग में, हम यह मूलभूत आधार स्थापित करते हैं कि आप एक संपूर्ण और अखंड व्यक्तित्व हैं।
दिल और दिमाग एक दूसरे से अलग नहीं हैं – आप पूरे एक ही हैं।
आप अक्सर अपनी सोच का संबंध दिमाग से और भावों का संबंध दिल से जोड़ते हैं। अगर आप पूरी सजगता और गंभीरता से इस पर गौर करें तो पाएँगे कि आप जैसा सोचते हैं, वैसा ही महसूस करते हैं। पर यह भी सच है कि आप जैसा महसूस करते हैं, वैसा ही सोचते हैं। यही कारण है कि योग ने भाव व विचार को एक साथ मानसिक शरीर का अंग माना है।
आप जिसे भी mind कहते हैं, वह सोचने की प्रक्रिया या बुद्धि है। दरअसल इसके कई आयाम हैं, जिनमें से एक Logical आयाम है। दूसरा गहरा Emotionally पक्ष है। मन का गहरा आयाम हृदय कहलाता है। जो भावों को एक ख़ास रूप देता है। तो आप जैसा सोचते या महसूस करते हैं, वे दोनों ही मन की गतिविधियाँ हैं।
दिल और दिमाग :-
हम अपने दिमाग से कुछ चाहते हैं और फिर निकल पड़ते हैं, उसे पाने के लिए। हम पीछा करते हैं, हम संघर्ष करते हैं, हम लड़ते हैं। और कई बार, जब हम अपने दिमाग की “सुनते” हैं, तो यह हमें बहुत पीड़ा देता है।
अगर आप कुछ चाहते हैं किसी भी भौतिक चीज, या व्यक्ति, आपका दिमाग उसे आपको दिलवाने की रेस में लग जायेगा, शायद दिमाग वो रेस जीत भी जाएगा, लेकिन उनकी हार और जीत दोनोंं आपके लिए पीड़ा दायक होगी, अगर हार होती है तो न मिलने की पीड़ा और मिल जाती हैं तो खोने के डर की पीड़ा।
दिल की इच्छाएं आप के सबसे “गहरे” हिस्से से आती हैं ,वे आपकी आत्मा से आती हैं।
दिल की इच्छा आपको दर्द नहीं पहुंचाती क्योंकि वह दिमाग की तरह “रेस” नहीं लगाती, वो सीधा, सही फैसला सुनाती हैं। आपके लिए जो सही हैं वही फैसला। दिल हमेशा पूरी तरह से पूर्ण होता है और आपकी चेतना से जुड़ा होता है।
जब भी आप कुछ भी दिल से करते है अगर आप उसमे सफल नहीं भी हो पाते है तो आपको कभी भी regret नहीं होता है, क्योकि आपको results में कोई interest नहीं होता है, आपका interest सिर्फ process में होता है।
जब आप अपने दिमाग को शांत करने और अवचेतन विचारों को उजागर करने में सक्षम होते हैं जो मन की इच्छा उत्पन्न करते हैं, तो आप तेजी से विकसित होते हैं।
कहते हैं कि दिल और दिमाग में अकसर जंग होती है और हमें दिल की सुननी चाहिए, पर यह कैसे समझ में आता है कि दोनो बातो में से दिल की आवाज कौन सी है ?
अगर आप किसी को अपना दुश्मन बना लें और उसे अपना प्यार करना चाहें, तो ऐसा करना आपके लिए कठिन होगा। हमें जीवन में सरल चीज़ो को कठिन नहीं बनाना चाहिए।
आप जो महसूस करते हैं, वही सोचते हैं, परंतु सोच और भावना आपके अनुभव में अलग दिखते हैं। ऐसा क्यों? क्योंकि विचार की अपनी स्पष्टता और गति है। Emotions थोड़ा धीमा होता है।
उदाहरण के लिए अगर आपको कोई इंसान अच्छा लगता है तो आपके मन में उसके लिए कोमल भाव होंगे। अचानक, वह आपके साथ कुछ ऐसा कर देता है जो आपको पसंद नहीं आता और वह आपको बुरा लगने लगता है। आपकी सोच उसे बुरा कहती है पर आपके भाव इतनी जल्दी नहीं बदलते। ये संघर्ष करते हैं। अगर ये मीठे होंगे तो ये एकदम से कड़वे नहीं हो सकते। हो सकता है कि तीन दिन, तीन महीने या तीन साल लगें, पर ये धीरे से बदलेंगे।
दिल की आवाज़ सुने या दिमाग की सुने(Your Desire)
हमने लोगो को अक्सर यह कहते सुने जाते हैं कि उनका दिल उन्हें एक ओर ले जाता है और दिमाग दूसरी ओर जाने को कहता है। हम खुद इन दोनों के बीच मे फंस कर रहे जाते हैं। अक्सर बहुत सी बातें हमारे साथ हर रोज भी होती है।
एक बार हम सोचते हैं कि दिमाग सही कह रहा है तो दूसरी बात हम अपनी भावनाओं से खिलवाड नहीं कर सकते और सोचते हैं कि दिल सही कह रहा है।
हमे उसकी बात मान लेनी चाहिए। वैसे देखा जाए तो दिल और दिमाग का अपना अपना महत्व होता है। दोनों का होना जरूरी होता है। और यह दोनों एक दूसरे के पूरक भी हैं। फिर भी यह कभी कभी झगड़ने लगते हैं।
जीवन के कुछ aspects में हमको दिमाग की जरूरत होती है और कुछ aspects में दिल की जरूरत होती है तो दोनों की ही अपनी- अपनी जगह पर value होती है।
रिश्तों को निभाना ( Relationships )
ऐसा होता है कि कई बार relationship को strong बनाने के लिए आप जो निर्णय ले रहे हैं, वह दिमागी तौर पर सही नहीं है, लेकिन अगर दिल से सोचने पर लगे कि आप सही कर रहे हैं तो दिल की ही सुननी चाहिए।
कई बार रिश्तों को निभाने के लिए कुछ नादानियां करना भी जरूरी होता है। अगर आप दिल पर दिमाग को हावी होने देंगे तो हर बात practical होकर सोचेंगे। इससे आप कभी भी सामने वाले की भावना को मान नहीं दे पाएंगे।
Relationships की जब भी हम बात करते है तो वो एक husband का अपनी wife के साथ हो सकता है, parents के साथ any kind of relationships हो सकती है।
दिल के अंदर छुपी होती है भावनाएं
उदासी, ख़ुशी, आश्चर्य, क्रोध, घृणा, भय, प्रेम, ममता और वासना यह सब वो भावनाएं है जिनके साथ इन्सान हर रोज अपना जीवन जीता है। पर ध्यान से सोचिए कि यह सब भावनाएं कहां से आ रही है, असल में वो दिल से होकर ही आ रही होती है।
आप चल रहे है उस समय पर कोई एक भावना मन में खड़ी होती है, आप मुस्कुरा देते है। आप बैठे है कुछ सोचते है, अचानक कभी खुश तो कभी दुखी हो जाते है।
जब हम किसी के साथ actual में जुड़ते है, किसी के साथ जुड़ना मतलब कि वहाँ पर हमारा कोई personal motive नहीं होता है तो वहाँ पर पूरे दिल के साथ किसी के साथ जुड़ते है, असल में ख़ुशी दिल से कोई काम करके ही मिलती है।
निष्कर्ष (Conclusion)
दिल और दिमाग अलग नहीं हैं आप पूरे एक हैं। पहले तो हमें यह समझना होगा कि दिल और दिमाग कहते किसे हैं। जब हमको इन दोनों के बीच के फर्क को समझते चले जाते है तो हमको समझ आ जाता है कि किसकी कितनी importance है।
आप अक्सर अपनी सोच का संबंध दिमाग से और भावों का संबंध दिल से जोड़ते हैं। अगर आप पूरी सजगता और गंभीरता से इस पर गौर करें तो पाएँगे कि आप जैसा सोचते हैं, वैसा ही महसूस करते हैं।
कुछ भी करने का आपके अंदर desire है और अगर ख्वाईश कुछ अलग करने की है तो दिल और दिमाग के बीच बगावत लाजमी है।