जंगल के किनारे एक छोटा सा गाँव था, जंगल में जंगली जानवरों की बहुतायत थी, वो हमेसा वही पर घूमते ही रहते थे, इसलिए गाँव के लोगों को पेड़ पर चढ़ने का ज्ञान होना अति-आवश्यक था, ताकि जंगली जानवरों से सामना होने पर वे पेड़ पर चढ़कर अपनी जान बचा सकें ।
उस गाँव में एक बुजुर्ग सज्जन रहा करते थे. सब लोग उन्हें ‘बाबा’ बुलाते थे. वे पेड़ पर चढ़ने की विधा में माहिर थे और लोगों को पेड़ पर चढ़ने का प्रशिक्षण दिया करते थे. गाँव के अधिकांश लोग उनसे ही प्रशिक्षण प्राप्त करने जाया करते थे ।
एक दिन बाबा ने उन युवकों के समूह को बुलाया, जिन्हें वे पेड़ पर चढ़ने का प्रशिक्षण दे रहे थे. वह उस समूह के प्रशिक्षण का अंतिम दिन था ।
बाबा उन्हें एक पेड़ के पास लेकर गए. वह एक ऊँचा और चिकना पेड़ था, जिस पर चढ़ना बेहद कठिन था ।
बाबा युवकों से बोले, “आज तुम्हारी training का last दिन है, मैं देखना चाहता हूँ कि क्या तुम लोग पेड़ पर चढ़ने में माहिर हो गए हो. इसलिए मैं तुम्हें इस चिकने और ऊँचे पेड़ पर चढ़ने की चुनौती दे रहा हूँ. यदि तुम सब इस पेड़ पर चढ़ने में सफ़ल रहते हो, तो दुनिया के किसी भी पेड़ पर आसामी से चढ़ सकते हो.”
बाबा की बात सुनकर सभी युवक उत्साहित हो गये, वे पेड़ पर चढ़ने के लिए एक पंक्ति में खड़े हो गए. सबसे पहला युवक पेड़ पर चढ़ने लगा. वह बड़ी ही आसानी से पेड़ पर चढ़ा और फिर नीचे उतरने लगा. उतरते समय जब वह आधे रास्ते में था, तब बाबा बोले, “सावधान…आराम से संभलकर उतरो. कोई जल्दी नहीं है.”
उस युवक ने वैसा ही किया. वह आराम से सावधानी से नीचे उतरा. उसके बाद एक-एक कर सारे युवक पेड़ पर चढ़ने लगे. जब वे पेड़ पर चढ़ते, तब तो बाबा उन्हें कुछ नहीं कहते, लेकिन जब वे पेड़ से उतरते समय आधे रास्ते पर होते या बस नीचे पहुँचने वाले होते, तो बाबा कहते, “सुनो, आराम से, थोड़ा संभलकर और पूरी सावधानी से उतरो, किसी प्रकार की कोई जल्दी नहीं है.”
सभी युवकों ने बाबा की बात मानी और पेड़ पर चढ़कर नीचे उतरने में सफ़ल हुए, उनको किसी भी प्रकार की कोई problem नहीं आयी।
सब बड़े ख़ुश थे. लेकिन एक बात उन्हें खटक रही थी और वह यह थी कि बाबा ने उन्हें पेड़ से उतरते समय ही सावधान रहने को क्यों कहा, पेड़ पर चढ़ते समय क्यों नहीं?
उन्होंने बाबा से पूछ ही लिया, “बाबा इस पेड़ की सबसे ऊपरी शाखा पर चढ़ना सबसे कठिन था, लेकिन आपने उस पर चढ़ते समय हमें संभलकर रहने को नहीं कहा, लेकिन पेड़ से उतरते समय जब जमीन तक की दूरी बहुत कम रह गई थी, तब आपने हमें संभलकर और सावधान रहने को कहा. ऐसा क्यों?”
बाबा बोले, “देखो, पेड़ की सबसे ऊपरी शाखा पर चढ़ना बहुत कठिन है, ये मैं भी जानता हूँ और तुम भी, इसलिए मेरे बिना बोले ही तुम पहले से ही सतर्क थे, ऐसा हर किसी के साथ होता है।
कार्य के प्रारंभ में सब सतर्कता से ही आगे बढ़ते हैं, किंतु सतर्कता और सावधानी में चूक तब होती है, जब हम मंजिल के समीप होते हैं, तब हमें लगने लगता है कि हमारा काम तो पूरा होने को है, मंजिल अब दूर नहीं और वहाँ हमारा ध्यान भटक जाता है और हम गलती कर जाते हैं. इसलिए हमेशा याद रखो कि मंजिल के नज़दीक पहुँचने और यथार्थ में मंजिल पर पहुँचने में बहुत फ़र्क है।
इस कहानी से हमको जीवन में क्या सीख मिलती है।
मित्रों, हमारी जीवन में भी ऐसा कई बार होता है कि किसी काम को पूरा करने के कगार पर होकर भी हम उसे पूरा नहीं कर पाते है, अंतिम क्षणों में कुछ गड़बड़ हो जाती है और हम पछताते रह जाते हैं।
अंतिम क्षणों की ज़रा सी असावधानी से हमारा पूरा काम बिगाड़ देती है,ऐसा इसलिए होता है क्योंकि मंजिल के करीब पहुँचकर हम अपना धैर्य खो देते हैं।धैर्य खो देने के कारण हमसे चूक हो जाती है, इसलिए जब तक मंजिल तक न पहुँचे, धैर्य बनाकर रखें, कार्य के प्रारंभ में जितना धैर्य और सावधानी आवश्यक है, कार्य समाप्ति तक भी आवश्यक है. इसलिए कार्य पूर्ण होने तक धैर्य न खोएं. उतने ही सावधान रहें, जितने प्रारंभ रहते हो, कहीं धैर्य खो देना लक्ष्य खो देने का कारण न बन जाए ।
समय और धर्य सबसे बड़ी ताकत :-
इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि समय और परिस्थितियां हमेशा एक जैसी नहीं होती है। हर व्यक्ति के जीवन में कभी अच्छा समय आता है, तो कभी बुरे दौर से उसे गुजरना पड़ता है, लेकिन ऐसा माना जाता है कि व्यक्ति की पहचान उसके बुरे दौर में ही होती है।
ऐसा कहने के पीछे सबसे बड़ा कारण यही है कि जीवन के अच्छे दौर में तो सामान्य से सामान्य व्यक्ति भी सही फैसला करने में सक्षम होता है लेकिन जब स्थिति प्रतिकूल हो, तो उस समय व्यक्ति की सही प्रतिभा का आकलन किया जाता है।
एक दिन तुम जागोगे और पाओगे कि उन चीज़ों को
करने के लिए समय नहीं बचा है जो तुम हमेशा करना चाहते थे,
इसलिए जो करना है अभी कर लो !
सही समय पर निर्णय ले :-
प्रतिकूल परिस्थितियों में सही निर्णय लेने वाला व्यक्ति ही सफलता की ओर अग्रसर होता है और जो व्यक्ति ऐसे समय में अपने को नहीं संभाल पाता उसे विफलता हाथ लगती है।
आखिरकार प्रतिकूल समय में सही निर्णय लेने के लिए सबसे महत्वपूर्ण गुण क्या हो सकता है। कठिन परिस्थितियों के समय व्यक्ति को किसकी सबसे अधिक आवश्यकता होती है।
अगर गंभीरता से विचार करें तो प्रतिकूल परिस्थितियों में व्यक्ति के अंदर सबसे पहले घबराहट उत्पन्न होता है और उस घबराहट में उसे अजीबो गरीब ख्याल आते हैं, उसकी उम्मीदें कमजोर पड़ती जाती है, उसका धैर्य जवाब देने लगता है और ऐसी स्थिति में वह जो भी निर्णय लेता है, उसमें से अधिकांश गलत साबित होते हैं।
इसलिए सबसे महत्वपूर्ण है प्रतिकूल समय में धैर्य को बनाए रखना। धैर्य से हीं कठिन से कठिन चुनौतियों का सामना किया जा सकता है। जिस व्यक्ति के पास धैर्य नहीं, वह छोटी से छोटी समस्याओं का सामना भी सही तरीके से नहीं कर पाता है।
याद रखें, केवल धैर्य ही आपको अपनी पूरी मानसिक क्षमता का उपयोग करने में सक्षम बनाता है और जिसके कारण आप कठिन से कठिन चुनौतियों का सफलता पूर्वक सामना करने के योग्य बन जाते हैं। इसलिए धैर्य को बनाए रखने की प्रवृति का विकास करें।
धैर्य रखने का सीधा मतलब अपने स्वभाव के शांत होने से है। जब आप शांत होकर स्थिरता के साथ चुनौतियों का सामना करते हैं और अपने को उत्तेजित नहीं होने देते तो आप इतना मजबूत हो जाते हैं कि किसी भी कठिनाई का समाना आप कर सकते हैं।
समय बहुत कीमती होता है और जो चला गया उसे कभी वापस नहीं लाया जा सकता है, इसलिए इसके उपयोग में हमेशा सावधानी रखें।
अगर आप अपने संसाधनों का उपयोग करके कोई काम दूसरे से करा सकते हैं, तो उसे खुद करके थोड़ा संसाधन बचाने की कोशिश न करें, क्योंकि उसी समय आप उससे बड़ा काम कर सकते हैं। ऐसे हीं छोटी-छोटी बातों का ध्यान रखें, ताकि समय हाथ से न फिसल जाए।
” समय आपके साथ कभी नहीं चलता,
आपको समय के साथ चलना ही पड़ता है “