Trust on God Story In Hindi
आयुष्मान शहर की एक छोटी-सी गली में रहता था। वह एक Medical दुकान चलाता था। सारी दवाइयों की उसे अच्छी जानकारी थी। पूरी दुकान खुद संभालता था, इसलिए कौन-सी दवा कहां रखी है, उसे अच्छी तरह पता था।
आयुष्मान पूरी ईमानदारी से अपना काम करता था। वह ग्राहकों को सही दवा, सही दाम पर देता था। सबकुछ अच्छा होने के बाद भी आयुष्मान नास्तिक था। भगवान में उसका जरा भी विश्वास नहीं था। लेकिन वो कहते है कि जब तक इंसान के साथ कोई घटना नहीं होती है तब तक किसी पर विश्वास नहीं करता है।
वह पूरा दिन दुकान पर काम करता और शाम को परिवार तथा दोस्तों के साथ समय गुजारता था। उसे ताश खेलने का शौक था। जब भी टाइम मिलता, दोस्तों के साथ ताश खेलने बैठ जाता था।
एक दिन वह दुकान पर था, तभी कुछ दोस्त आए। तभी भारी बारिश भी शुरू हो गई। रात हो गई थी, लेकिन सभी बारिश थमने का इंतजार कर रहे थे। बिजली भी चली गई थी। बैठे-बैठे क्या करें, सोचा मोमबत्ती की रोशनी में ताश ही खेल लेते हैं। सारे दोस्त दुकान में ताश खेलने के लिए बैठ गए।
सभी लोग ताश में मगने थे, तभी एक लड़का दौड़ा-दौड़ा आया। वह पूरी तरह भीग चुका था। उसने जेब से दवा की एक पर्ची निकाली और आयुष्मान से दवा मांगी। आयुष्मान खेल में मगन था। उसने पहली बार में तो ध्यान ही नहीं दिया।
तभी लड़ने को जोर से आवाज देते हुए कहा, मेरी मां बहुत बीमार है। सारी दवा दुकानें बंद हो गई हैं। एक आपकी दुकान ही खुली है। आप दवा देंगे तो मेरी मां ठीक हो जाएगी।
आयुष्मान आधे-अधूरे मन से उठा, पर्ची देखी और अंदाज से दवा की एक शीशी उठाकर उसे दे दी। पैसे काटकर लड़के को लौटा दिए। लड़का भागते हुए चला गया।
तभी बारिश थम गई। आयुष्मान के दोस्त चले गए और आयुष्मान भी दुकान बंद करने लगा, तभी उसे ध्यान आया कि रोशनी कम होने के कारण उसने गलती से लड़के को चूहे मारने वाली दवा की शीशी दे दी है। आयुष्मान के हाथ-पांव फूल गए। उसका दिल जोर-जोर से धड़कने लगा। उसकी दस साल की नेकी पर मानो जैसे ग्रहण लग गया।
उस लड़के बारे में वह सोच कर वह तड़पने लगा। सोचा यदि यह दवाई उसने अपनी बीमार मां को देगा, तो वह अवश्य मर जाएगी। लड़का भी बहुत छोटा होने के कारण उस दवाई को तो पढ़ना भी नहीं जानता होगा।
एक पल वह अपनी इस भूल को कोसने लगा और ताश खेलने की अपनी आदत को छोड़ने का निश्चय कर लिया पर यह बात तो बाद के बाद देखी जाएगी। अब क्या किया जाए ?
उस लड़के का पता ठिकाना भी तो वह नहीं जानता। कैसे उस बीमार मां को बचाया जाए ? सच कितना विश्वास था उस लड़के की आंखों में। आयुष्मान को कुछ सूझ नहीं रहा था। घर जाने की उसकी इच्छा अब ठंडी पड़ गई। दुविधा और बेचैनी उसे घेरे हुए था।
घबराहट में वह इधर-उधर देखने लगा। पहली बार उसकी नजर दीवार के उस कोने में पड़ी, जहां उसके पिता ने जिद्द करके भगवान श्रीकृष्ण की तस्वीर दुकान के उद्घाटन के वक्त लगाई थी।
तब पिता ने कहा था, भगवान की भक्ति में बड़ी शक्ति होती है, वह हर जगह व्याप्त है और हमें सदैव अच्छे कार्य करने की प्रेरणा देता है। भोलानाथ को यह सारी बात याद आने लगी। आज उसने इस अद्भुत शक्ति को आजमाना चाहा।
उसने कई बार अपने पिता को भगवान की तस्वीर के सामने कर जोड़कर, आंखें बंद करते हुए पूजते देखा था। उसने भी आज पहली बार कमरे के कोने में रखी उस धूल भरे कृष्ण की तस्वीर को देखा और आंखें बंद कर दोनों हाथों को जोड़कर वहीं खड़ा हो गया।
थोड़ी देर बाद वह छोटा लड़का फिर दुकान में आया। पसीना पोंछते हुए उसने कहा- क्या बात है बेटा तुम्हें क्या चाहिए?
लड़के की आंखों से पानी छलकने लगा। उसने रुकते-रुकते कहा- बाबूजी.. बाबूजी मां को बचाने के लिए मैं दवाई की शीशी लिए भागे जा रहा था, घर के करीब पहुंच भी गया था। बारिश की वजह से आंगन में पानी भरा था और मैं फिसल गया। दवाई की शीशी गिर कर टूट गई। क्या आप मुझे वही दवाई की दूसरी शीशी दे सकते हैं बाबूजी? लड़के ने उदास होकर पूछा।
हां क्यों नहीं ? आयुष्मान ने राहत की सांस लेते हुए कहा। लो, यह दवाई!
पर उस लड़के ने दवाई की शीशी लेते हुए कहा, पर मेरे पास तो पैसे नहीं हैं, उस लड़के ने हिचकिचाते हुए से कहा।
आयुष्मान को उस पर दया आई। कोई बात नहीं – तुम यह दवाई ले जाओ और अपनी मां को बचाओ। जाओ जल्दी करो, और हां अब की बार जरा संभल के जाना। लड़का, अच्छा बाबूजी कहता हुआ खुशी से चल पड़ा।
अब आयुष्मान की जान में जान आई। भगवान को धन्यवाद देता हुआ अपने हाथों से उस धूल भरे तस्वीर को लेकर अपनी धोती से पोंछने लगा और अपने सीने से लगा लिया।
उस दिन उसको विश्वास हो गया कि जो भी करता है वो भगवान ही करता है और वो सबके भले के लिए ही करता है।
भगवान पर विश्वास करना चाहिए या नहीं ?
जैसे अपने माता पिता के कहने पर एक बालक बिना देखे ही उन्हें अपने सच्चे माँ बाप होने का सहज ही विश्वास कर लेता है वैसे ही संसारी प्राणी इस जगत के अस्तित्व और कार्यप्रणाली को समझ कर बिना देखे ही भगवान के होने पर सहज ही विश्वास कर लेता है।
और जैसे मातापिता की आज्ञा में रहने पर हमेशा खुशी का ही अनुभव होता है ऐसे ही भगवान की बतायी आज्ञा में रहने पर हरदम खुशी का ही अनुभव होता है। और जैसे माता द्वारा पिलाये गए दूध से तुरंत ही सुख की अनुभूति होती है वैसे भगवान की भक्ति से उपजी खुशी से तुरंत ही खुशी होती है अर्थात कोई समय भेद नही है।
बहुत से लोग होते हैं वो विषम परिस्थितियों में भी लड़ते रहते हैं और उनके अंदर इतना ज़्यादा आत्मविश्वास होता है कि वो अपने काम में डटे रहते हैं कि कभी न कभी परिस्थितियां अनुकूल होंगी….
परन्तु हर इंसान की अपनी सीमा होती है,बहुत से लोगों का धैर्य जवाब दे जाता है उन्हें कोई रास्ता नही दिखता…तब वो भगवान को याद करते हैं…
और जैसा कि कहा भी जाता है कि मानो तो शंकर और न मानो तो कंकड़,
मन की शान्ति के लिये।
अपनी समस्या बाँटने के लिये ।
अपनी असफलता किसी और पर मढ़ने के लिए ।
अपनी सफलता का शुक्रगुजार करने के लिए ।
अपनी जिम्मेदारी भगवान को सौप कर निश्चिंत होने के लिए ।
ये सब विश्वास का ही खेल है,अगर आपके अंदर भरपूर मात्रा मे आत्मविश्वास है तो आपको किसी दूसरे के सहारे की ज़रूरत नही है,और यदि आप टूट जाते हैं, आपको सम्भालने वाला कोई नही है तो आपके पास ईश्वर पर भरोसा करने के सिवाय कुछ नही बचता है।
ईश्वर का रूप ऐसा भी हो सकता है कि ईश्वर को जानने अथवा समझने वाले महापुरुषों को ईश्वर को पूर्ण रूप से परिभाषित करने के लिए शब्द एवं उदाहरण नहीं मिले, अतः उन्होंने अपने अपने शब्दों के अनुसार ईश्वर को परिभाषित करने की कोशिश की और इसी क्रम में कई धर्मों की रचना हो गई।
विश्वास पूछकर या सोच कर नहीं होता है वह तो automatically ही होता है, हर व्यक्ति के लिए इस प्रश्न का answer भिन्न भिन्न है आप स्वयं से पूछेंं कि क्या आपको ईश्वर पर विश्वास है या नहीं तो आपको अपने-आप ही जवाब मिलने लग जायेगे।